बीजापुर (विजयपुरा) का इतिहास और अद्भुत धरोहरें जानिए। गोल गुम्बज़, इब्राहीम रोज़ा, जामा मस्जिद जैसी अदिलशाही इमारतों की अनोखी दास्तान जब आप कर्नाटक की सरज़मीन पर क़दम रखते हैं और बीजापुर (आज का विजयपुरा) की गलियों से गुज़र रहे होते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे वक़्त थम सा गया हो। हर पत्थर, हर दरवाज़ा, हर गुम्बद आपको सदियों पुरानी दास्तानें सुनाना चाहता है और ची…
Read moreअगर आप तारीख़ (इतिहास) के शौक़ीन हैं और मुग़ल दौर की शान-ओ-शौकत से मोहब्बत रखते हैं, तो आइए आज हम आपको लेकर चलते हैं फ़तेहपुर सीकरी की सैर पर। ये वही शहर है जिसे बादशाह अकबर ने तामीर कराया था और जो आज भी हमें मुग़लिया सल्तनत की रौनक, ताक़त और तामीरी (वास्तुकला) शान का अहसास कराता है। आगरा से सिर्फ़ 37 किलोमीटर दूर ये शहर लाल बलुआ पत्थर से बना है, जो धूप की क…
Read moreहैलो दोस्तो! आज हम बात करेंगे एक ऐसी जगह की जो इतिहास की किताबों से निकलकर जीवित हो उठती है – अकबर का मक़बरा, सिकंदरा। अगर आप आगरा घूमने जाते हैं, तो ताजमहल और आगरा फोर्ट तो सब देखते हैं, लेकिन सिकंदरा में स्थित यह मक़बरा एक छिपा हुआ रत्न है। यहाँ आकर लगता है जैसे समय ठहर गया हो, और मुग़ल बादशाह अकबर की महानता आज भी हवा में घुली हुई है। चलिए, इस ब्लॉग में…
Read moreआगरा एतिमाद-उद-दौलाह का मक़बरा, यमुना नदी किनारे बागों का बहतरीन नमूना आगरा, जो अपने ऐतिहासिक स्मारकों और मुग़ल वास्तुकला के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, इसी शहर में एक ऐसा स्थान है जो शायद ताजमहल की चमक में थोड़ा कम उभर कर सामने आता है, लेकिन इसकी खूबसूरती और एतिहासिक महत्व किसी से कम नहीं है। यह स्थान है एतिमाद-उद-दौलाह का मकबरा, जो न सिर्फ एक शानदार …
Read moreजलालुद्दीन ने कैसे चारों तरफ लाशों के ढेर मचा देने वाले चंगेज़ खान की सेना को चारों खाने चित्त किया? साल था 1221, जब मंगोल साम्राज्य अपनी ताकत के शिखर पर था। चंगेज खान की सेना जहां भी कदम रखती, वहां तबाही का मंजर छूट जाता। लोग डर से थर-थर कांपते थे और मानते थे कि मंगोलों को कोई नहीं रोक सकता। उनकी रणनीति हवा से तेज और हमले बिजली की तरह थे। लेकिन सितंबर 122…
Read moreसाल था 1528, और मध्य भारत का चंदेरी किला अपने आप में एक अभेदनीय था। घने जंगलों और ऊंची चट्टानों के बीच बसा यह किला राजपूतों की आन-बान-शान और हिम्मत का जीता जागता प्रतीक था। इस किले पर राज करते थे मेदनी राय—एक ऐसा योद्धा, जिसके दिल में जंग की आग हमेशा सुलगती रहती थी। लेकिन अब यह किला एक बड़े सियासी तूफान का गवाह बनने जा रहा था। बाबर का नया लक्ष्य 1526 में…
Read moreसाल था 1527। दिल्ली अब बाबर के हाथों में आ चुकी थी| पानीपत की पहली जंग में इब्राहिम लोधी को मात देकर बाबर मुगल सल्तनत की नींव रख चुका था। लेकिन यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती। असली रोमांच तो अब शुरू होने वाला था—एक ऐसे योद्धा के साथ, जो सिर्फ तलवार नहीं, बल्कि अपने गर्व और परंपरा का परचम भी लहराता था। उसका नाम था—राणा सांगा। राणा सांगा: राजपूतों का गौरव राण…
Read moreAI Depiction Image पानीपत का मैदान, 1526 की गर्मियों की एक सुबह। यह जगह, जो कभी सुनसान-सी हुआ करती थी, अब इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक का गवाह बनने को तैयार थी। एक तरफ था इब्राहीम लोधी—उसके पास लाखों की सेना, भारी-भरकम हाथी, तेज़ घोड़े, और सत्ता का वो घमंड जो उसे अजेय समझता था। दूसरी तरफ था बाबर—महज़ 12 हज़ार सैनिकों के साथ, न तो संख्या में उसका द…
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