साल था 1527। दिल्ली अब बाबर के हाथों में आ चुकी थी| पानीपत की पहली जंग में इब्राहिम लोधी को मात देकर बाबर मुगल सल्तनत की नींव रख चुका था। लेकिन यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती। असली रोमांच तो अब शुरू होने वाला था—एक ऐसे योद्धा के साथ, जो सिर्फ तलवार नहीं, बल्कि अपने गर्व और परंपरा का परचम भी लहराता था। उसका नाम था—राणा सांगा।
राणा सांगा: राजपूतों का गौरव
राणा सांगा कोई आम राजा नहीं थे। वे राजपूतों की शान और उम्मीद थे। मेवाड़ से लेकर मालवा, बुंदेलखंड और गुजरात तक, कई राजपूत राजाओं ने उनके साथ कंधे से कंधा मिलाया। राणा ने एक शक्तिशाली गठबंधन तैयार किया और बाबर को सीधे चुनौती दी। इतिहासकारों के मुताबिक, इस गठबंधन में करीब 80,000 सैनिक और 500 से ज्यादा हाथी शामिल थे, जो उस दौर की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक थी।
बाबर: नई तकनीक का योद्धा
दूसरी ओर, बाबर अपने साथ कुछ अनोखा लेकर आया था—तोपें, बंदूकें और मंगोल रणनीति। उसकी सेना में करीब 15,000 सैनिक थे, लेकिन उनकी तुर्की घुड़सवार और तोपखाना किसी बड़ी ताकत से कम नहीं था। बाबर की मानसिक मजबूती और रणनीति ने उसे एक कदम आगे रखा।
खानवा: जंग का मैदान
यह महासंग्राम हुआ खानवा में, जो आज राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित है। 17 मार्च 1527 को लड़ी गई इस जंग में बाबर ने वही चाल चली जो पानीपत में कामयाब रही थी। उसने खाइयां खोदकर बेरिकेड बनाए, तोपों से लगातार हमले किए और अपनी मशहूर ‘तुलगुमा’ रणनीति (चारों ओर से घेराव) का इस्तेमाल किया।
जंग का रोमांच और मोड़
राणा सांगा ने बेमिसाल बहादुरी दिखाई। उनकी सेना में हाथियों का इस्तेमाल उनकी ताकत था, लेकिन तोपों की गड़गड़ाहट ने इन हाथियों को बेकाबू कर दिया, जो अपनी ही सेना पर टूट पड़े। ऊपर से, उनके कुछ साथी जैसे शिलादित्य और कुछ अफगान सरदारों ने बीच जंग में साथ छोड़ दिया। यह एक ऐसी चूक थी, जिसने राणा की हार तय कर दी।
राणा सांगा गंभीर रूप से घायल हो गए और बेहोशी की हालत में मैदान से हट गए। इस हार ने राजपूतों के दिल्ली पर कब्जे के सपनों को तोड़ दिया। बाबर ने खुद को ‘गाजी’ यानी धर्मयुद्ध का विजेता घोषित किया, जो उसकी जीत का प्रतीक बन गया।
रोचक तथ्य: जो आप नहीं जानते
1. तोपों का पहला बड़ा इस्तेमाल: खानवा की जंग में तोपों का इस्तेमाल भारत में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर हुआ था, जिसने युद्ध की दिशा बदल दी।
2. राणा सांगा की बहादुरी: इतिहास में दर्ज है कि राणा सांगा पहले ही 80 से ज्यादा जंग लड़ चुके थे और उनके शरीर पर 80 से ज्यादा घावों के निशान थे।
3. बाबर का बेबाक अंदाज: बाबर ने जंग से पहले शराब और नशे को छोड़कर अपनी सेना को अनुशासित करने का फैसला लिया, जो उनकी जीत का राज माना जाता है।
4. खानवा का रहस्य: कुछ इतिहासकार मानते हैं कि अगर राणा सांगा की सेना में एकता रहती, तो परिणाम अलग हो सकता था।
इतिहास का नया मोड़
खानवा की जीत ने बाबर को उत्तर भारत पर मजबूत पकड़ बनाने का मौका दिया। अगर राणा सांगा विजयी होते, तो शायद एक राजपूत साम्राज्य की नींव पड़ती। लेकिन बाबर की चतुराई और तोपों की ताकत ने इतिहास को नई दिशा दी—जिसने आगे चलकर हुमायूं, अकबर और शाहजहां जैसे महान मुगल बादशाहों को जन्म दिया।
निष्कर्ष
खानवा की जंग सिर्फ एक युद्ध नहीं, बल्कि भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़ थी, जिसने सत्ता की दिशा तय की। क्या आपको लगता है कि राणा सांगा की रणनीति में कोई और रास्ता था? अपनी राय कमेंट में जरूर शेयर करें!
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Important: Discover the historic Battle of Khanwa (1527), fought between Mughal emperor Babur and Rajput ruler Rana Sanga. Explore its causes, strategies, outcome, and significance in shaping Mughal rule in India, along with rare facts and insights from medieval Indian history.
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