अगर आप तारीख़ (इतिहास) के शौक़ीन हैं और मुग़ल दौर की शान-ओ-शौकत से मोहब्बत रखते हैं, तो आइए आज हम आपको लेकर चलते हैं फ़तेहपुर सीकरी की सैर पर। ये वही शहर है जिसे बादशाह अकबर ने तामीर कराया था और जो आज भी हमें मुग़लिया सल्तनत की रौनक, ताक़त और तामीरी (वास्तुकला) शान का अहसास कराता है। आगरा से सिर्फ़ 37 किलोमीटर दूर ये शहर लाल बलुआ पत्थर से बना है, जो धूप की किरणों में ऐसा चमकता है मानो कोई पुरानी दास्तान आंखों के सामने ज़िंदा हो गई हो। हमने सोचा क्यों ना इस ब्लॉग में इसकी तारीख़, इमारतों और अहमियत पर आसान ज़बान में बात की जाए।
तारीख़: एक सूफ़ी की दुआ से तामीर हुआ शहर
फ़तेहपुर सीकरी की कहानी जुड़ती है सूफ़ी संत शैख़ सलीम चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह से। कहते हैं उनकी दुआ से अकबर को वारिस मिला, और इसी खुशी में 1571 से 1585 के दरमियान इस शहर की बुनियाद रखी गई। पहले ये सल्तनत की राजधानी बना, लेकिन पानी की कमी की वजह से सिर्फ़ 20 बरस बाद छोड़ दिया गया और राजधानी लाहौर शिफ़्ट कर दी गई। आज ये शहर पुरातत्व विभाग के तहत महफ़ूज़ है और इसमें अकबर की मज़हबी रवादारी और तामीरी हुस्न दोनों नज़र आते हैं।
शैख़ अहमद सिरहिंदी और दीन-ए-इलाही का ज़वाल
शैख़ अहमद सिरहिंदी, जिन्हें "मुजद्दिद-ए-अल्फ़-ए-सानी" भी कहा जाता है, इस्लाम के एक महान आलिम और मुफक्क़िर थे। बादशाह अकबर द्वारा पेश किया गया मज़हबी निज़ाम "दीन-ए-इलाही" उस दौर में एक नयी तहज़ीबी कोशिश मानी जाती थी, जिसका मक़सद इस्लाम, हिन्दू धर्म और दूसरी रूहानी रिवायतों को मिलाकर एक नया मज़हब क़ायम करना था। लेकिन सिरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह को यह अमल इस्लाम की असल रूह और शरियत से इख़्तिलाफ़ करता हुआ नज़र आया। उन्होंने इस तहरीक को इस्लामी अक़ीदों और तौहीद के लिए ख़तरा क़रार दिया और अपनी तहरीरों, ख़ुत्बों और ख़तूत के ज़रिए लोगों को आगाह किया। उनकी इस कोशिश का गहरा असर पड़ा और अकबर के बाद उसके बेटे जहाँगीर ने भी धीरे-धीरे अपने वालिद की मज़हबी सियासत से रुख़ मोड़ लिया। नतीजतन, दीन-ए-इलाही का साया इतिहास में ज़्यादा देर तक बाक़ी न रह सका और सिरहिंदी की जद्दोजहद ने इस्लाम की हिफ़ाज़त में अहम किरदार अदा किया।
घूमने के लिए शहर कैसे पहुँचें
फ़तेहपुर सीकरी आगरा से 37 किमी और भरतपुर से 18 किमी दूर है। अगर आप आगरा घूम रहे हैं, तो एक दिन का ट्रिप यहां का बना सकते हैं। ट्रेन, बस या कार से आसानी से पहुंचा जा सकता है। सूर्योदय या सूर्यास्त के वक्त यहां का नजारा देखने लायक होता है – लाल पत्थर की इमारतें तांबे जैसे आसमान के नीचे चमकती हैं, जो कलाकारों, सोशल मीडिया creators और फोटोग्राफरों को खूब भाता है।
वास्तुकला की शान: लाल पत्थर का जादू
शहर 11 किलोमीटर लंबी दीवारों से घिरा हुआ है, जिसमें कई दरवाजे हैं। इमारतें ज्यादातर लाल बलुआ पत्थर से बनी हैं, जो फारसी, हिंदू और इस्लामी शैलियों का मिश्रण हैं। यहां की वास्तुकला इतनी अनोखी है कि इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल माना जाता है। शहर को दो हिस्सों में बांटा गया है – मर्दाना और जनाना, यानी पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग इलाके।
मुख्य स्मारक: हर इमारत की एक अलग कहानी
फतेहपुर सीकरी में कई मशहूर इमारतें हैं, जिनमें से कुछ की बात करते हैं:
बुलंद दरवाज़ा: जिसे “फ़तेह का दरवाज़ा” भी कहा जाता है, उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर सीकरी में जामा मस्जिद के अहम् दरवाज़े के तौर पर बनाया गया था। इसे मुग़ल बादशाह अकबर ने 1575 में गुजरात फ़तह की याद में तामीर करवाया था। बलुआ पत्थर से बने इस दरवाज़े की ऊँचाई करीब 54 मीटर और चौड़ाई 35 मीटर है, जबकि सड़क से इसकी कुल बुलंदी 176 फ़ीट है, जिस तक पहुँचने के लिए 42 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। इसकी तामीर में हिंदु और फ़ारसी फ़न-ए-तामीर (स्थापत्य कला) का बेहतरीन संगम दिखाई देता है। दरवाज़े की मेहराबों और स्तंभों पर क़ुरआन की आयतें नक़्क़ाशी की गई हैं, साथ ही इसमें बाइबल की कुछ पंक्तियाँ भी दर्ज हैं, जो अकबर की मज़हबी रोवादारी और खुले विचारों का पैग़ाम देती हैं। यह दरवाज़ा सीधे सूफ़ी संत शेख़ सलीम चिश्ती की दरगाह की तरफ़ खुलता है, जिनकी दुआ से अकबर को बेटा जहाँगीर पैदा हुआ था। अकबर ने इसी वजह से फ़तेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाया। बुलंद दरवाज़े पर फ़ारसी में लिखे हुए शिलालेख अकबर की गुजरात और दक्खन फ़तह का ज़िक्र करते हैं। इसकी नक़्क़ाशी इतनी बारीक है कि नीचे से देखने पर भी छोटे-छोटे डिज़ाइन साफ़ नज़र आते हैं। आज यह दरवाज़ा यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का हिस्सा है और हर साल हज़ारों सैलानी इसकी शान देखने आते हैं। बुलंद दरवाज़ा सिर्फ़ एक इमारत नहीं, बल्कि अकबर की फ़तह, ताक़त और मज़हबी सहिष्णुता का अज़ीम निशान है, जो आज भी हिंदुस्तान की तारीख़ और फ़न-ए-तामीर का बेहतरीन नमूना माना जाता है।
जामा मस्जिद: 1571 में तामीर हुई ये मस्जिद भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। इसमें एक विशाल सहन (आंगन) है, जहां हजारों लोग इबादत कर सकते हैं, साथ ही जम्मत खाना हॉल और शाही ख्वातीन की कब्रें भी मौजूद हैं। इसका डिजाइन मक्का की मस्जिद से मुतासिर है, लेकिन इसमें फारसी और हिंदू तत्वों का खूबसूरत मिश्रण है, जैसे कि हिंदू मेहराबें और फारसी नक्काशी। ये मस्जिद अकबर की मजहबी सहिष्णुता का सबूत है, जहां मुस्लिम और हिंदू कला एक साथ मिलकर मुगल दौर की रौनक दिखाती है। यहां आकर आपको लगेगा कि ये सिर्फ इबादतगाह नहीं, बल्कि सांस्कृतिक मिलन का केंद्र है।
शेख सलीम चिश्ती की दरगाह: जामा मस्जिद के अंदर बनी ये संगमरमर की कब्र उस महान सूफी संत शेख सलीम चिश्ती को मुतअल्लिक है, जिनकी दुआ से अकबर को वारिस मिला था। अकबर ने इसे संत के सम्मान में बनवाया, और ये इम्पीरियल पैलेस कॉम्प्लेक्स का हिस्सा है। नक्काशी इतनी बारीक और नफीस है कि देखते ही बनती है, मानो पत्थरों में जान डाल दी गई हो। ये दरगाह अकबर की सूफी मजहब से मोहब्बत और मजहबी आदर का प्रतीक है, जहां आज भी लोग दुआ मांगने आते हैं और शांति महसूस करते हैं।
दीवान-ए-आम: ये जनता की सुनवाई का हॉल है, जहां उत्सव, जन नमाज और बादशाही दरबार लगते थे। तीन तरफ से घिरा एक आयताकार सहन है, और पश्चिम में बादशाह का सिंहासन वाला मंडप। दोनों तरफ जालीदार स्क्रीन लगी हैं, जो दरबार में मौजूद ख्वातीन को अलग रखती थीं। ये जगह मुग़ल प्रशासन की जनता से जुड़ाव दिखाती है, जहां अकबर आम लोगों की फरियाद सुनते थे। यहां की वास्तुकला इतनी खुली और आलीशान है कि आपको लगेगा जैसे पुराने दौर की सल्तनत जीवित हो गई हो।
दीवान-ए-खास: निजी सुनवाई का ये हॉल दो मंजिला लगता है, लेकिन अंदर एक ही बड़ा कमरा है। बीच में एक नक्काशीदार स्तंभ है, जो एक विशाल ब्रैकेटेड कैपिटल को संभालता है, और चारों कोनों से मंत्रियों के लिए संकरे रास्ते निकलते हैं। माना जाता है कि अकबर का सिंहासन इस कैपिटल के ऊपर गोल जगह पर रखा जाता था। ये इमारत मुग़ल दरबार की गोपनीय और रणनीतिक बैठकों का प्रतीक है, जहां बारीक नक्काशी और अनोखा डिजाइन मुगल कारीगरों की महारत दिखाता है। यहां खड़े होकर सोचिए, कितनी महत्वपूर्ण फैसले यहां लिए गए होंगे!
पंच महल: ये पांच मंजिला महल दौलत खाना-ए-खास से जुड़ा हुआ है, और इम्पीरियल पैलेस कॉम्प्लेक्स का अहम हिस्सा है। ये हवादार और खूबसूरत पवेलियन है, जो गलियारों से जोधा बाई के महल से भी जुड़ा है। हालांकि इसका डिजाइन सरल है, लेकिन ये शाही रहन-सहन और आराम की जगह थी, जहां हवा के झोंके और नजारे का मजा लिया जाता था। मुग़ल वास्तुकला की योजना में ये रिहायशी और मनोरंजन की मिसाल है, जो अकबर के शानदार जीवनशैली को दर्शाता है।
जोधा बाई का महल: अकबर की राजपूत बीवी जोधा बाई के नाम पर बना ये सबसे बड़ा शाही महल है। इसमें हिंदू स्तंभ और मुस्लिम गुंबदों का मिश्रण है, ऊंची दीवारें और पूर्व में 9 मीटर ऊंचा पहरेदार दरवाजा, जो गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करता है। ये इमारत मुग़ल-राजपूत गठबंधन का प्रतीक है, जहां दो संस्कृतियों की कला एक साथ मिली है। यहां की विशालता देखकर लगता है कि ये सिर्फ महल नहीं, बल्कि एक छोटा सा किला है, जहां शाही जीवन की रौनक थी।
तुर्की सुल्ताना का घर: अनूप तालाब के बगल में बना ये आराम का पवेलियन पचीसी बोर्ड के बाएं तरफ है। छत पर ज्यामितीय नक्काशी है, जो मध्य एशियाई लकड़ी की कला से मुशाबेह लगती है। ये जगह शाही आराम और मनोरंजन के लिए थी, जहां तुर्की सुल्ताना (संभवतः अकबर की तुर्की पत्नी) वक्त गुजारती थीं। ये इमारत मुगल पैलेस में व्यक्तिगत स्पेस की मिसाल है, जो विदेशी प्रभावों को दिखाती है और मुग़ल कला की विविधता को उजागर करती है।
खज़ाना (अंख मिचौली): ये तीन कमरों वाला खजाना है, जहां हर कमरे को संकरे गलियारे से सुरक्षित किया गया था और पहरेदार तैनात रहते थे। पहले माना जाता था कि यहां अंख मिचौली का खेल खेला जाता था, लेकिन असल में ये धन और कीमती चीजों का भंडार था। मुगल दरबार की प्रशासनिक और सुरक्षा व्यवस्था की ये एक मिसाल है, जो दिखाती है कि कैसे बादशाह अपने खजाने की हिफाजत करते थे। यहां की मजबूत दीवारें देखकर लगता है कि ये सिर्फ भंडार नहीं, बल्कि एक सुरक्षित किला था।
दौलत खाना-ए-खास: अकबर का निजी कक्ष, जिसमें किताबखाना (लाइब्रेरी), आराम का कमरा और ख्वाबगाह (बेडरूम) शामिल है। गलियारों से ये दूसरे महलों से जुड़ा हुआ है, जो शाही जीवन की सुविधा दिखाता है। ये जगह बादशाह के व्यक्तिगत जीवन का केंद्र थी, जहां पढ़ाई, आराम और नींद का इंतजाम था। मुग़ल वास्तुकला में ये निजी स्पेस की बेहतरीन मिसाल है, जो अकबर की बौद्धिक रुचियों को भी दर्शाती है।
हवा महल और नगीना मस्जिद: हवा महल एक जालीदार टावर है, जो चार बाग शैली के बाग के सामने है और जोधा बाई के महल से जुड़ा हुआ है। ये हवादार जगह थी, जहां से नजारे देखे जाते थे। नगीना मस्जिद दरबार की ख्वातीन के लिए थी, जो छोटी लेकिन नफीस इबादतगाह है। दोनों मिलकर मुग़ल पैलेस की सुंदरता बढ़ाती हैं, जहां हवा, नजारे और इबादत का मिश्रण है। ये इमारतें महिलाओं के स्पेस की अहमियत दिखाती हैं, जो मुगल संस्कृति का हिस्सा थीं।
स्टोन कटर्स मस्जिद: फ़तेहपुर सीकरी की सबसे पुरानी इबादतगाह, जो जामा मस्जिद के बाएं तरफ है और बुलंद दरवाजे से प्रवेश किया जाता है। ये पत्थर काटने वालों की मस्जिद के नाम से मशहूर है, शायद निर्माण मजदूरों के लिए बनी थी। सरल लेकिन मजबूत वास्तुकला वाली ये मस्जिद शहर की शुरुआती तारीख को दर्शाती है, जहां आम लोगों की इबादत का इंतजाम था। यहां आकर लगता है कि ये सिर्फ मस्जिद नहीं, बल्कि निर्माण के दौर की यादगार है।इसके अलावा तानसेन की बारादरी, दिल्ली दरवाजा, आगरा गेट जैसे कई और स्मारक हैं, हर एक की अपनी तारीखी अहमियत है।
टिकट, समय और सलाह
फ़तेहपुर सीकरी घूमने का टिकट भारतीयों के लिए सस्ता है, विदेशियों के लिए थोड़ा ज्यादा। सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है। पानी की बोतल साथ रखें, क्योंकि गर्मी में घूमना मुश्किल हो सकता है। गाइड लेना अच्छा आईडिया है, जो आपको हर इमारत की कहानी सुना सकता है।
आखिरी बात: क्यों घूमें फ़तेहपुर सीकरी?
ये जगह सिर्फ पत्थरों का शहर नहीं, बल्कि अकबर के सपनों और मुग़ल संस्कृति का जीत जागता सुबूत है। यहां आकर आप महसूस करेंगे कि कैसे एक बादशाह ने कई अलग अलग धर्मों को मिलाकर एक नई दुनिया बनाई। इसके अलावा मुग़ल बादशाह अकबर ने इन सभी धर्मों को मिलाकर एक नया धर्म "दीन-ए-इलाही" बनाया जिसका अकबर के ही दरबार में मौजूद कुछ मुस्लिम उलमा और विद्वानों ने विरोध भी किया था अगर आप इतिहास प्रेमी हैं, तो ये आपके लिए जन्नत है। अगली बार आगरा जाएं, तो फ़तेहपुर सीकरी को मिस ना करें!
इसके अलावा अकबर के दरबार में ये नौ रत्न विभिन्न क्षेत्रों में अपनी विशेषज्ञता के लिए जाने जाते थे। यहां इन रत्नों के बारे में कुछ और जानकारी दी गई है:
- अबुल फजल: अकबर के मुख्य सलाहकार और अकबरनामा के लेखक थे।
- फैजी: अकबर के दरबार के कवि थे।
- तानसेन: एक महान संगीतकार थे जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- बीरबल: अपनी बुद्धिमानी और चतुराई के लिए प्रसिद्ध थे।
- राजा टोडरमल: अकबर के वित्त मंत्री थे और उन्होंने भूमि राजस्व प्रणाली में सुधार किया।
- राजा मान सिंह: अकबर के सबसे भरोसेमंद सेनापतियों में से एक थे।
- अब्दुल रहीम खान-ए-खाना: एक महान कवि और विद्वान थे, जिन्होंने कई भाषाओं में लिखा।
- हकीम हुक्काम: शाही चिकित्सक थे।
- मुल्ला दो पियाजा: अकबर के दरबार में एक हास्य कलाकार और सलाहकार थे।
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