साल था 1528, और मध्य भारत का चंदेरी किला अपने आप में एक अभेदनीय था। घने जंगलों और ऊंची चट्टानों के बीच बसा यह किला राजपूतों की आन-बान-शान और हिम्मत का जीता जागता प्रतीक था। इस किले पर राज करते थे मेदनी राय—एक ऐसा योद्धा, जिसके दिल में जंग की आग हमेशा सुलगती रहती थी। लेकिन अब यह किला एक बड़े सियासी तूफान का गवाह बनने जा रहा था।
बाबर का नया लक्ष्य
1526 में पानीपत की जंग में इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली की गद्दी हथियाने वाले बाबर का सपना अब पूरे हिंदुस्तान पर राज करने का था। लेकिन राजपूतों की धरती इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं थी। 1527 में खानवा की जंग में राणा सांगा को हराने के बाद भी बाबर को पता था कि राजपूतों की हिम्मत अभी बरकरार है और अपने लक्ष्य को हासिल करना उतना आसान नहीं है, इसलिए राजपूतों को मात देने के लिए बाबर ने एक नया लक्ष्य तय किया और वो था चंदेरी। जो कि राजपूतों के साहस और हिम्मत का केंद्र था—चंदेरी।
बाबर ने चंदेरी किले की चारों तरफ से घेराबंदी शुरू की। तोपों की गड़गड़ाहट, घोड़ों की टापों की आवाज, और अफगानी-तुर्की सैनिकों की विशाल फौज ने किले के चारों ओर मौत का साया फैला दिया। उसने मेदनी राय को एक संदेश भेजा, "दोस्ती कर लो, वरना जंग के लिए तैयार रहो।" लेकिन मेदनी राय ने सिर झुकाने से साफ इनकार कर दिया। उनकी आंखों में वीरता और साहस की चमक थी।
जंग की शुरुआत
जनवरी 1528 की एक ठंडी सुबह, जब कोहरा चंदेरी की चट्टानों पर छाया था, किले के भीतर तलवारों की खनक और योद्धाओं के जोशीले नारे गूंज उठे। बाबर की सेना ने किले की मजबूत दीवारों पर हमला बोला। तोपों से पत्थर बरसाए गए, सीढ़ियां चढ़कर सैनिक अंदर घुसे, और खूनी जंग शुरू हो गई।
राजपूतों ने हर गली, हर नुक्कड़ और हर दरवाजे पर डटकर मुकाबला किया। खून की होली खेली गई, लेकिन जब मेदनी राय ने महसूस किया कि किला अब बचाना मुश्किल है, तो उन्होंने वो कदम उठाया जो राजपूत इतिहास का सबसे दुखद पहलू है—जौहर।
जौहर: एक वीरता का बलिदान
किले की महिलाओं ने आग का अलाव सजाया। राजपूत पत्नियां, माताएं और बेटियां अपनी इज्जत की रक्षा के लिए उस आग में कूद गईं। इसके बाद मेदनी राय और उनके साथियों ने आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी और वीरगति प्राप्त की। यह दृश्य इतना मार्मिक था कि बाबर ने अपनी किताब बाबरनामा में लिखा, "हमने किला जीत लिया, लेकिन वहां का मंजर देखकर दिल दहल गया, उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है।"
रोचक तथ्य: जो आप नहीं जानते
1. चंदेरी का सामरिक महत्व: चंदेरी किला अपनी ऊंची चट्टानों और प्राकृतिक सुरक्षा के कारण एक अभेद दुर्ग माना जाता था, जिसे जीतना मुश्किल था।
2. मेदनी राय की वीरता: मेदनी राय ने बाबर के सामने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया, जो उनकी अदम्य साहस की मिसाल है।
3. तोपों का कहर: यह जंग खानवा के बाद बाबर द्वारा तोपखाने का दूसरा बड़ा इस्तेमाल थी, जिसने राजपूतों की पारंपरिक रणनीति को चुनौती दी।
4. जौहर का इतिहास: चंदेरी का जौहर राजपूत महिलाओं की कुर्बानी का एक दुर्लभ उदाहरण है, जिसे इतिहास में गर्व और दुख दोनों के साथ याद किया जाता है।
इतिहास का नया अध्याय
चंदेरी की जीत ने बाबर को मध्य भारत में अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका दिया। यह जंग सिर्फ एक सैन्य जीत नहीं, बल्कि राजपूतों की वीरता और बलिदान की गाथा है। अगर मेदनी राय की रणनीति में कोई बदलाव होता, तो शायद इतिहास की दिशा कुछ और होती।
निष्कर्ष
चंदेरी की कहानी हिम्मत, सम्मान और बलिदान का मेल है। क्या आपको लगता है कि मेदनी राय की हार टालने का कोई रास्ता था? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं और इस अनसुनी गाथा को सोशल मीडिया पर शेयर करें!
---
"चंदेरी किला", "बाबर और मेदनी राय", "1528 की जंग", "राजपूत इतिहास", और "जौहर की कहानी"
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.